जीवन की प्यास और जीने की आस , बनाती हैं मुझे बुभुक्षु ढूँढता हूँ नित नए आयाम , और कुछ नयी दिशाएँ भी जो कर सकें आश्वस्त , मुझे और मेरे जीव को भी खोजता हूँ उन प्रश्नों के उत्तर , जो जगाते हैं घनी रातों में पहुँचता हूँ स्वयं के भीतर तब , जब कि बाहर देखना संभव न हो , और जब पाता हूँ वहां भी गहरा घना अन्धकार , तब आशाओं की भोर खींचती है मुझे अपनी ओर , और पुनः निकल पड़ता हूँ मैं , अपनी बुभुक्षा मिटाने , एक नयी खोज की ओर !! रूपेश १३/०३/२०१२ सर्वाधिकार सुरक्षित
मेरे जीवन के इस छोटे से सफ़र में अब तक जो भी पड़ाव आये हैं ,,,,,,,उन्हीं से मिले अनुभवों को लिखने का प्रयास मैं कर रहा हूँ........अनुभव स्वयं में अच्छे या बुरे नहीं होते.....ये तो हमारी अपेक्षाएं हैं जो उन्हें अच्छा या बुरा सिद्ध कराती हैं......एवं अपेक्षाओं के पैमाने व्यक्तित्वों के अनुसार बदलते रहते हैं.......... अतः निश्चित रूप से मेरे अनुभव मेरे व्यक्तित्व के दर्पण होंगे.....!!! ..........रूपेश .