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मार्च, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बुभुक्षा ......!!!

जीवन की प्यास और जीने की आस , बनाती हैं मुझे बुभुक्षु  ढूँढता हूँ नित नए आयाम , और कुछ नयी दिशाएँ भी जो कर सकें आश्वस्त , मुझे और मेरे जीव को भी खोजता हूँ उन प्रश्नों के उत्तर , जो जगाते हैं घनी रातों में पहुँचता  हूँ स्वयं के भीतर तब , जब कि बाहर देखना संभव न हो  , और जब पाता हूँ वहां भी गहरा घना अन्धकार , तब आशाओं की भोर खींचती है मुझे अपनी ओर , और पुनः निकल पड़ता हूँ मैं , अपनी बुभुक्षा मिटाने , एक नयी खोज की ओर !!                           रूपेश                       १३/०३/२०१२                  सर्वाधिकार सुरक्षित

ऐ मेरी घासलेटी जिंदगी ......!!!

मेरी घासलेटी जिंदगी  कितनी मुश्किलों से पाया है मैंने तुझे   खोये हैं कई मनचाहे रंग , तब जा कर मिली है तू घुले हैं तुझमे मेरे कई रंग , मेरे जूनून का लाल  तो प्यार का गुलाबी भी , गर दोस्ती का सफ़ेद तब नफरतों का स्याह  रंग भी , और हाँ मेरा एक और रंग जो है पानी के रंग का , जिसमे रंगी है मेरी रूह  डरता हूँ मैं कभी कभी , कहीं ये भी तेरे ही रंग में रंगकर घासलेटी न हो जाए ,  करता हूँ इल्तजा तुझसे कम से कम मेरी रूह को , तो बख्श देना तू ऐ  मेरी घासलेटी जिंदगी !!!                     -  रूपेश                     ०९/०३ /२०१२            सर्वाधिकार सुरक्षित 

माँ .......!!!

 बहुत ही कठिन होता है माँ को शब्दों में बांधना , नहीं चलती यहाँ कभी  कैसी भी शब्दों की साधना ! कैसे लिखूं ? क्या लिखूं ? क्या कहूँ? क्या न कहूँ ? ममता लिखूँ  शिक्षा लिखूँ , पहला कदम  पहली मुस्कान , पहला ही प्यार  या पहली उड़ान , धरती लिख दूं या क़ि आसमान कोई बता दे मुझे मेरी माँ क़ी पहचान शब्दों का कभी , न था इतना अकाल जितना है आज , जब कि मैं उसी का लाल हाँ हूँ मैं भी कृतार्थ  , होगा यही सबका यथार्थ , है ये भी नहीं क़ि नहीं कोई धरती पे , होगी इस माँ जैसी  ऐ   दोस्त  मेरी माँ , बिलकुल ही है  तेरी माँ जैसी...!!!                           रूपेश                        ०८ /०३ /२०१२     महिला दिवस पर माँ को समर्पित.........                 सर्वाधिकार सु...

" होली है भाई होली है "......!!!

 होली फिर ले के आई है बचपन की  और   लड़कपन की यादें भी  , जब गुझिया साझी बना करती थीं और पड़ोसी की कचरी , हमारे छत  पर माँ के बनाये पापड़ों के साथ साथ , तैयार हुआ करती थीं बचपन के दोस्त दिल में जोश , और दिमाग में शरारतें लिए आया करते थे , और " होली है भाई होली है " के साथ लड़ाईयां भी    , प्यार के रंग में रंग जाती थी और लड़कपन की वो होली , जब ठिठोली के लिए लगाते थे दौड़ एक से दूसरे ,   मोहल्लों में  और पाते थे अनजानों में भी दोस्त , और अब मिलतें हैं दोस्त भी रंग न लगाना  , की  मनुहार के साथ गोया कि होली कल फिर आ जायेगी , अब नहीं सूखतीं कचरियां साझी  छतों पर , और गुझियाँ भी बना करती हैं अकेले कमरों में बैठा हूँ आज भी , इसी उम्मीद में जब कि फिर होगी साझी होली तभी कह पाऊंगा मैं भी सही मायनों में कि " होली है भाई होली है "                  रूपेश                 ०...

सड़क किनारे बैठकर....!!

सड़क किनारे बैठकर जब देखता हूँ  इंसानी रेलों  को भागते हुए , पाता हूँ हर एक में  बस अपना ही चेहरा हर एक की दौड़ पता नहीं क्यों  मुझे लगती है अपनी भागता हूँ मैं भी अपनी जिंदगी से कुछ इसी तरह  नहीं   नहीं   इससे भी  तेज़ रफ़्तार में और  पीछे  छूटते चले  जाते हैं कुछ चेहरे कुछ रिश्ते  कुछ यादें बीते  लम्हे बचपन लड़कपन बेइंतहा प्यार ढेर सारी तकरार  और और  और शायद मैं भी... सड़क पे भागते  इंसानी रेलों को  देखकर सोचता हूँ मैं.....!!!                            -  रूपेश ...                        ०५/०३/२०१२                  सर्वाधिकार सुरक्षित 

मन की उड़ान .....!!!

मन तेरी उड़ान  कितनी असीम ! नापे  है तू , क्षण में सागर  घूमे    ब्रह्नांड बन  यायावर ! क्षण में व्याकुल  पल में शीतल , मन तू चंचल  मन तू अविकल ! संसार में सार , जीवन निःसार  ये देह , व्यापार , आत्मा ही प्यार ! सृष्टि  अनादि , सम्बन्ध जरा मित्रता आदि , ईश्वर  है परा ! मन की उड़ान ..!! अब तू ही थाम मैं भी करता , तेरा ही गान ! मन की उड़ान .....!!!          - रूपेश...         ०३/०३/२०१२           सर्वाधिकार सुरक्षित 

बस यही गलती हो जाती है ..... !!!

 खामोशियों से बातें  करता हूँ जब  , तुम्हारी सदा वहां से आती है , मुझको लगता है तुम हो यहाँ , बस यही गलती हो जाती है.....! तू किस्मत में ही थी न मेरी , दुनिया भी मुझे ये समझाती  है , फिर भी सुनता हूँ क्यों तेरी ये सदा ? , जो गगन चीर  कर आती है ! अब भी बैठा हूँ लौ को लिए , दिल में जो ,ये फिक्र सताती है , तेरे जिक्र की शुरुआत ही क्यों  मेरी रूह  ये खाक कर जाती है ! करना न अब मोहब्बत कभी , यही  सीख मुझे सिखलाती है , क्या करे गाफिल दिल भी जब ? बस यही गलती हो जाती है  !!!                   -  रूपेश                  ०२/०३/२०१२               सर्वाधिकार सुरक्षित 

हाँ ज़रीफ़ बना रहता हूँ मैं.......!!!

 ज़रीफ़ बने रहना , यूँ इतना आसाँ भी नहीं  करता हूँ बड़ी मेहनत , उदासियों को हटा आता हूँ तेरे सामने गोया कि , खुशमिजाजी मेरे रग रग में बसी है फिर तुझे भी लगता होगा , कि मौजां ही रखता हूँ , मैं अपने गुलशन में और बहार ऐ चमन जिंदगी में, पर कभी झाँक के तो देख , मेरी तन्हाइयों में , तू पायेगा वहां एक रोता  दिल , दो टूटे ख्वाब , और  और एक उदास जिंदगी , हाँ ज़रीफ़ बना रहता हूँ मैं तेरे सामने....!!!                   रूपेश            ०२/०३/२०१२            ज़रीफ़ - खुशमिजाज़            सर्वाधिकार सुरक्षित

हे राम धरा पर आ जाओ ,

हे राम  धरा पर आ जाओ , मानव को धृति बता  जाओ ! नैराश्य धर्म का मूल नहीं , ये पाठ पुनः सिखला जाओ !! चले  मानवता प्रगति पथ पर  , तुम युक्ति वही दिखा  जाओ ! मानव अहंकार दर्प  में चूर खड़ा ,  ये दर्प दमन ही कर जाओ !! मिलते हैं  रावण भी इस कलि में , तुम इनकी बलि चढ़ा  जाओ ! अहिल्याओं की अब सुन लो पुकार  , तुम इनको मुक्ति  दिला जाओ !! मारूति जैसा भक्त न मिलेगा यहाँ , तुम लखन बिना ही आ जाओ ! मानवता विस्मृत सोयी  पड़ी , तुम ह्रदय अलख जगा जाओ ! हे राम  पुनः धरा पर आ जाओ , मानव को धृति सिखा जाओ !!                          रूपेश                     ०१/०३/२०१२                   सर्वाधिकार सुरक्षित 

ये प्रेम है या प्रतिछाया इसकी .......!!!

किंचित विलग निश्चित तटस्थ  है ह्रदय में भरा भाव यही , ये प्रेम है या प्रतिछाया  इसकी , मेरी शंका का आधार यही ! यदि प्रेम है ये राधा का , तो इसमे है त्याग वही ! यदि मीरा भाव भरा इसमे , तब   आस्था का संसार यही ! गौरी जैसा तप हो इसमे , हो सती सा संताप वही ! राम समान द्रढ़ता  इसमे , तब सीता सा विश्वास यही ! है प्रेम के रूप कई जग में , इनमे से ये है रूप कोई ! ये प्रेम है या प्रतिछाया इसकी , मेरी शंका का आधार यही !!                     रूपेश                  ०१/०३/२०१२                सर्वाधिकार सुरक्षित