सड़क किनारे बैठकर
जब देखता हूँ
इंसानी रेलों को
भागते हुए ,
पाता हूँ हर एक में
बस अपना ही चेहरा
हर एक की दौड़
पता नहीं क्यों
मुझे लगती है अपनी
भागता हूँ मैं भी
अपनी जिंदगी से
कुछ इसी तरह
नहीं नहीं इससे भी
तेज़ रफ़्तार में और
पीछे छूटते चले जाते हैं
कुछ चेहरे
कुछ रिश्ते
कुछ यादें
बीते लम्हे
बचपन
लड़कपन
बेइंतहा प्यार
ढेर सारी तकरार
और और
और शायद मैं भी...
सड़क पे भागते
इंसानी रेलों को
देखकर सोचता हूँ मैं.....!!!
- रूपेश ...
०५/०३/२०१२
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