खामोशियों से बातें करता हूँ जब ,
तुम्हारी सदा वहां से आती है ,
मुझको लगता है तुम हो यहाँ ,
बस यही गलती हो जाती है.....!
तू किस्मत में ही थी न मेरी ,
दुनिया भी मुझे ये समझाती है ,
फिर भी सुनता हूँ क्यों तेरी ये सदा ? ,
जो गगन चीर कर आती है !
अब भी बैठा हूँ लौ को लिए ,
दिल में जो ,ये फिक्र सताती है ,
तेरे जिक्र की शुरुआत ही क्यों
मेरी रूह ये खाक कर जाती है !
करना न अब मोहब्बत कभी ,
यही सीख मुझे सिखलाती है ,
क्या करे गाफिल दिल भी जब ?
बस यही गलती हो जाती है !!!
- रूपेश
०२/०३/२०१२
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