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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

बाजार.................!!!!

तुम्हारे बाजार की बातें
क्यों नहीं समझ पाता मैं?
जबकि हर बार लाते हो तुम 
एक नया फलसफा मुझे समझाने का ,
कुछ इस तरह गोया सब साइंस ही है 
ख़ास तौर से बाज़ार का वो साइंस 
जो तुम समझाते  हो मुझे कि 
प्रक्टिकली बाज़ार है तो इल्यूज़न 
लेकिन एक्जिस्ट करता है ,
उस सर्वव्यापी ईश्वर की  तरह 
जिसकी सत्ता हम  विज़ुअलाइज़ तो  नहीं कर  सकते
 पर फील जरूर  कर सकते हैं 
सो तुम्हारे आर्ग्यूमेंट खड़ा कर देते हैं
 तुम्हारे बाज़ार को ईश्वर के बराबर 
और मैं तुम्हारे लिए बन कर रह जाता हूँ 
उस एथीस्ट की तरह जिसकी सत्ता को
 ईश्वर के वो फॉलोअर भी नहीं स्वीकार पाते 
जो सब में ईश्वर को ही देखते हैं ..!!!
 - रूपेश  

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

आओ मन की गिरहें खोल दें ......!!!

आओ अपने मन की गिरहें खोल दें ,
 उनके हौसलों को फिर नए पर दें ,
छू पायेंगे वो भी फिर इन  आसमानों को 
गर इक बार अपने ये काँधे हम उनको दें !

आओ मन की गिरहें खोल दें ...

हैं गहरे ख्वाब उनकी  छोटी आँखों में ,
भरे हैं लाखों मुराद इस छोटे मन में ,
उनकी उम्मीदों को फिर नए रंग दें ,
इन सपनों में अपने ही कुछ रंग भर दें !

आओ मन की गिरहें खोल दें ..

तुम्हारे साथ से ही वो दम भर जायेंगे ,
आसमां तो क्या समंदर भी नाप आयेंगे ,
हो जाएगा तुम्हारा  जीवन भी  इन्द्रधनुष सा 
गर इक  बार इस  बचपन को अपना संग  दें 

आओ अपने मन की गिरहें खोल दें .....!!!

 -  रूपेश 


भारत में दो करोड़ अनाथ बच्चों में से केवल 0.3 % हर साल  ही दूसरे परिवारों द्वारा अपनाए जाते हैं ...इसे और बढाने की जरूरत  है .....जिससे ये भी और बच्चों की तरह परिवार का साथ पा सकें !!







शनिवार, 13 अप्रैल 2013

सतरंगी सपने.........!!!

सुना है वो बिना माँ बाप के हैं 

पर बुनते हैं वो भी ,
अपनी आँखों में सतरंगी सपने 
वो सतरंगी सपने जो ,
बदल जाते हैं हर बार कत्थई रंग में 
इन्ही सतरंगों से तो गढ़ते हैं वो ,
हर बार अपने लिए एक नया आसमां 
वो आसमां, जो है धानी रंग का 
जिसमे देखते हैं वो ,
उस धूप  को ,जो चमका देती है 
उनके इन सतरंगी सपनों को और भी 
पर पता नहीं क्यों हर बार ?
पिघला नहीं पाती ये धूप ,
उस सफ़ेद बर्फ को , जिसके साए तले 
दब जाते हैं उनके सतरंगी सपने ,
और बदल जाते हैं काले स्याह रंग में 
कुछ घासलेटी रंग जैसे 
वो चाहते हैं कोई एक और धूप  भी ,
जो पिघला सके इस सफ़ेद बर्फ को 
और बना सके हकीकत ,
उनके इन सतरंगी सपनों को 
वो बिना माँ बाप के हैं ,
हाँ वो अनाथ हैं.... !!

         - रुपेश 



गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

बातें...... !


वो देखना चाहते हैं उन्हें ,

सिर्फ अपनी नज़रों से !
और दिखाना चाहते हैं वही ,
बाकी दुनिया को भी !
कि उनके देखने की ललक ,
बना देती है उन्हें अजूबा !
बाकी दुनिया के लिए ,
कुछ कुछ अजायबघर जैसा !
फिर करते हैं वो बातें ,
वो बातें जो नहीं भरतीं ,
उनके बिलखते बच्चों के पेट !
वो लिखते हैं उनकी बातें ,
जिससे नहीं आती तब्दीली ,
कोई भी उनकी उस जिंदगी में !
जिससे निजात पाने के लिए ,
वो करते हैं मेहनत दिन रात ,
और फिर रह जाती हैं वही बातें 
जिनके न होने से शायद ,
करता कोई कुछ उनके लिए !
बैठे हैं आज भी वो इस इंतज़ार में ,
कि कभी तो ख़तम होंगी ये बातें !
और शुरू होगा कुछ और भी ,
जो बदलेगा उनके और 
उनके नौनिहालों के भविष्य भी ,
कि जब ये बातें ख़तम होंगी ,
तब शायद जी पायें वो भी इक दिन ,
 अपनी मनचाही जिंदगी !

      - रुपेश 


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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

ओ लाल गमछे वाले ......!!!

ओ लाल गमछे वाले  !!

तुम अब क्यों नहीं आते इस ओर ?
तुम आते थे जब भी इधर ,
ले जाते थे अपने साथ 
लाल पसीने से सने फावड़े ,
और लगाते थे बुलंद हुंकार 
जिसकी गूँज से सिहर जाते थे ,
उन काले जिगर वालों के दिल भी 
जिनकी गिद्ध सी लालची नज़रों ने ,
लहूलुहान किया कई बार 
उस  मेहनतकश को भी ,
जिसके कुदाल की एक चोट भी 
फोड़ देती थी इस धरती का सीना ,
और उगा देती थी 
उन नए सपनों की पौध ,
जिसके सहारे वो बुनता था 
अपनी खुशहाल जिंदगी के सपने !

ओ लाल गमछे वाले 
तुम अब क्यों नहीं आते ?
मिलते थे जब भी पहले तुम 
देखते ही तुम्हारे लाल आँखों की चमक , 
मिलते थे हौंसले उनको भी 
जिनके खुद जीने  की  चाहतें  ,
दूसरों के फैसलों में उगा करती थीं ,

ओ लाल गमछे वाले 
क्या तुम्हारी आँखों में भी अब ,
आ गया है वो कालापन 
जिसने रंग लिया है ,
उस लाल को अपने रंग में 
जिसमे रंगने की उम्मीदों ने ,
खड़ा किया था उन कंकालों को भी 
जो बैठे रहते थे इस शमशान को , 
अपनी नियति मानकर 
और मिलाते थे अपनी आवाज़ भी , 
तुम्हारे उस लाल सलाम में 
जो दहला देती थी काले दिलों को !


ओ लाल गमछे वाले तुम 
अब क्यों नहीं आते इस ओर   !!!

                       -    रूपेश 

रविवार, 6 मई 2012

विधाता ...........!!!


जग के स्वामी हो तुम कहलाते ,
घट घट में तुम ही पूजे जाते !
आत्मा अनादि का अंत हो तुम ,
 बुद्धों का अंतिम लक्ष्य हो तुम !

 गौतम के त्रिरत्नों में तुम ही रचे ,
अरिहंत के तत्वों में तुम ही बसे !
न्यायावतार का पद हो जो लिए ,
दृष्टि फिर यों बंद क्यों हो किये ?

 हैं ब्रह्म तत्व के ज्ञानी जो ,
मानें हैं तुम्हें अन्तर्यामी वो !
फिर ऐसा विधान रचे हो क्यों ?
असमय ही त्रास दिए हो क्यों ?

 हो निर्देशक अवचेतन के जो ,
 भ्रम रखते हो चेतन में क्यों ?
 ईश्वरत्व के पद की सिद्धि करो,
 भक्तों के भ्रम को दूर करो !
प्रश्नों के जो उत्तर न दे पाओगे
 फिर कैसे यों विधाता कहलाओगे ? -

 रूपेश

 ०६/०५/२०१२


 सर्वाधिकार सुरक्षित

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

प्यार अँधा होता है ......???


कौन कहता है प्यार अँधा होता है ?
देखा है मैंने तुम्हें कई बार ,
चांदनी रातों में  जगमगाते सितारों की चमक ,
लगती हैं मुझे तुम्हारे आँखों के पुतलियों जैसी 
दरख्तों के पीछे से झांकता चाँद ,
दिलाता है याद मुझे ,
तुम्हारे मुस्कुराते चेहरे की
सुबह की चमकती ओस की बूंदे ,
घने बादलों से ढका आसमान
और हाँ ढलती शाम का सूरज ,
इन सभी में पाता हूँ झलक  
तुम्हारे ही शख्सियत की ,
कई बैचन रातें गुज़ारी हैं मैंने
इन सभी में तुझको देख कर 
और लोग कहते हैं 
कि प्यार अँधा होता है !!!

           -  रूपेश
        १५/०४/२०१२