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सोमवार, 30 जनवरी 2012

गर तुमने साथ दिया होता मेरा !!!!


पूनम की रात को जगमगाते देख
अक्सर ख्याल आता है मुझे ,
गर तुमने तब साथ दिया होता मेरा
जीत लाता मैं इस जहाँ को तुम्हारे लिए ,
बनाता तुम्हारे ख़्वाबों के महल को हकीकत ,
जिसमे चाँद बिखेरता अपनी धवलता को ,
और तारे जगमगाते कुछ कुछ जुगनुओं की तरह
अरे हाँ तुम्हारे कमरे के बाहर के बगीचे में
लगे हुए जैसमीन की खुशबु
बनाती तुम्हारे मन को उसके जैसी
और मह्कातीं तुम मेरे जहाँ को
उसी के जैसी खुशबू में
पर तुम्हें कहाँ रास आया
कि मैं मानू तुम्हारे सपनो को अपना
और तुम मेरे जहाँ को अपने लिए
इसीलिए दुनियावी रिश्तों के बंधन को
मेरे बंधन से ज्यादा मज़बूत माना तुमने
और छोड़ दिया मुझे इसी दुनिया में
हर रोज यही सोचने के लिए
कि गर तुमने साथ दिया होता मेरा !!!!

रुपेश ......


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३०/०१/२०१२

शनिवार, 28 जनवरी 2012

बसंत........

लो नव बसंत आया ,
है नव उमंग लाया ,
शस्य श्यामला हुई धरा
चहुँ ओर फैली हरियाली ,
पक्षियों ने भी नव रूप धरा
हुई अब सृष्टि निराली ,
गगन नीलाभ हुआ
और जग हरषाया ,
कोयल ने पुनः मधुर
स्वर लहरी गाया ,
भर उठा ह्रदय नवीन स्पंदन से
हुई मधुर वाणी सरस इस रंग से ,
करने स्वागत इस ऋतू का
देखो देव भी है आया ,
करो सब मिल स्वागत कि है
पुनः नव

बसंत आया !!


रुपेश श्रीवास्तव
२८/०१/२०१२

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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

मुसीबतें.........

खेतों में खड़े बिजूका को देख कर
कभी कभी सोचता हूँ मैं ,
हम भी तो कुछ इसी तरह जीवन बिताते हैं..
ये सोचकर दूसरों के दुखों से भागते हैं ,
जैसे बिजूका को खड़ा देख पंछी नहीं आते
ऐसे ही दूसरों जैसी मुसीबतें हम तक कभी नहीं आएगी ,
पर सुना है आज कल पंछी पहचानने लगे हैं
बिजूका और इंसान के फर्क को ,
और दोनों को एक मानना छोड़ दिया है उन्होंने ,
वैसे ही जैसे मुसीबतें मानती हैं हमें भी दूसरों जैसा ,
और इंतज़ार करती हैं हमारा उनके घेरे में आने तक ,
उसी तरह जैसे खेत में खड़े इंसान को देखकर ,
उनके जाने का इंतज़ार पंछी करते हैं
और टूट पड़ते हैं उसी बिजूका पर
जिसे वो जीता मानकर डरा करते थे !
इसीलिए अब पंछी बिजूका से और

मुसीबतें इंसान से नहीं डरतीं .....!!!!

रूपेश श्रीवास्तव
२५/ ०१ / २०१२


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