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रविवार, 18 मार्च 2012

बुभुक्षा ......!!!

जीवन की प्यास
और जीने की आस ,
बनाती हैं मुझे बुभुक्षु 
ढूँढता हूँ नित नए आयाम ,
और कुछ नयी दिशाएँ भी
जो कर सकें आश्वस्त ,
मुझे और मेरे जीव को भी
खोजता हूँ उन प्रश्नों के उत्तर ,
जो जगाते हैं घनी रातों में
पहुँचता  हूँ स्वयं के भीतर तब ,
जब कि बाहर देखना संभव न हो  ,
और जब पाता हूँ वहां भी
गहरा घना अन्धकार ,
तब आशाओं की भोर
खींचती है मुझे अपनी ओर ,
और पुनः निकल पड़ता हूँ
मैं , अपनी बुभुक्षा मिटाने ,
एक नयी खोज की ओर !!

                          रूपेश
                      १३/०३/२०१२

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