मैं इश्क हूं जाया नहीं जाऊंगा ! कयामत तलक तुझे याद आऊंगा !! जब भी बीतेंगी गुरबतों में जिन्दगी ! फिर से मोहब्बत का पैगाम फहरा जाऊंगा !! जब बंटेगी जिन्दगानियां फिरकापरस्ती में ! मैं मुल्क की मजहबी दीवारें गिराने आऊंगा !! पुकारेगा लहू जब भी पुरजोर मेहनतकशों का मैं अपना लाल रंग उस लहू में मिला जाऊंगा !! जो चाहेगा बने रहे मुल्क, सबके रहने लायक मैं हर उस शख्स को बावक्त याद आऊंगा !! मैं इश्क हूं , जाया नहीं जाऊंगा कयामत तलक, तुझे याद आऊंगा !! - रूपेश ( भगतसिंह के लिये...उनके जन्मदिन पर... 28 सितम्बर )
मेरी जगह खुद को रखकर, मेरे दर्दों को महसूस कर, मेरी ही तरीके से मेरे मसलों को, ये लोग कैसे हल करते हैं? क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं ! बचपन की बातों को जिन्दा रखकर, समझदारी होने पर भी नासमझ बनकर, अपनी दुनिया में खुद को खोकर भी, मेरी दुनिया में ये बने रहते हैं, क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं ! बचपने की उन लड़ाईयों में, लड़कपन की रूबाईयों में, जिन्दगी की तन्हाईयों में भी, मेरे साथ ही चले चलते हैं , क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं ! हां दोस्त रंग बदलते हैं !! - रूपेश