मेरी जगह खुद को रखकर,
मेरे दर्दों को महसूस कर,
मेरी ही तरीके से मेरे मसलों को,
ये लोग कैसे हल करते हैं?
क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं !
बचपन की बातों को जिन्दा रखकर,
समझदारी होने पर भी नासमझ बनकर,
अपनी दुनिया में खुद को खोकर भी,
मेरी दुनिया में ये बने रहते हैं,
क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं !
बचपने की उन लड़ाईयों में,
लड़कपन की रूबाईयों में,
जिन्दगी की तन्हाईयों में भी,
मेरे साथ ही चले चलते हैं ,
क्योंकि दोस्त रंग बदलते हैं !
हां दोस्त रंग बदलते हैं !!
- रूपेश
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