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बाजार.................!!!!

तुम्हारे बाजार की बातें
क्यों नहीं समझ पाता मैं?
जबकि हर बार लाते हो तुम 
एक नया फलसफा मुझे समझाने का ,
कुछ इस तरह गोया सब साइंस ही है 
ख़ास तौर से बाज़ार का वो साइंस 
जो तुम समझाते  हो मुझे कि 
प्रक्टिकली बाज़ार है तो इल्यूज़न 
लेकिन एक्जिस्ट करता है ,
उस सर्वव्यापी ईश्वर की  तरह 
जिसकी सत्ता हम  विज़ुअलाइज़ तो  नहीं कर  सकते
 पर फील जरूर  कर सकते हैं 
सो तुम्हारे आर्ग्यूमेंट खड़ा कर देते हैं
 तुम्हारे बाज़ार को ईश्वर के बराबर 
और मैं तुम्हारे लिए बन कर रह जाता हूँ 
उस एथीस्ट की तरह जिसकी सत्ता को
 ईश्वर के वो फॉलोअर भी नहीं स्वीकार पाते 
जो सब में ईश्वर को ही देखते हैं ..!!!
 - रूपेश  

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सतरंगी सपने.........!!!

सुना है वो बिना माँ बाप के हैं  पर बुनते हैं वो भी , अपनी आँखों में सतरंगी सपने  वो सतरंगी सपने जो , बदल जाते हैं हर बार कत्थई रंग में  इन्ही सतरंगों से तो गढ़ते हैं वो , हर बार अपने लिए एक नया आसमां  वो आसमां, जो है धानी रंग का  जिसमे देखते हैं वो , उस धूप  को ,जो चमका देती है  उनके इन सतरंगी सपनों को और भी  पर पता नहीं क्यों हर बार ? पिघला नहीं पाती ये धूप , उस सफ़ेद बर्फ को , जिसके साए तले  दब जाते हैं उनके सतरंगी सपने , और बदल जाते हैं काले स्याह रंग में  कुछ घासलेटी रंग जैसे  वो चाहते हैं कोई एक और धूप  भी , जो पिघला सके इस सफ़ेद बर्फ को  और बना सके हकीकत , उनके इन सतरंगी सपनों को  वो बिना माँ बाप के हैं , हाँ वो अनाथ हैं.... !!          - रुपेश 

विचार .....

आज पुनः सोच रहा यह ह्रदय मेरा ..........आखिर कब आएगा वह सवेरा ? है जिसमे राम - राज्य की परिकल्पना .....सर्वत्र सबके लिए सद्भावना , बसते हैं जिसमे संतोष और विश्वास .........रहती चहुँ ओर प्रेम की आस , कुंठा दुर्भावना से कोसों दूर ...................नहीं दुराग्रह का कोई स्थान , न ईर्ष्या हो न तपन ह्रदय में ................हो केवल शीतल मलय जीवन में , मन हों सबके ऐसे आह्लाद .................जैसे होता पक्षियों का निनाद , होता पग पग पे स्वाभिमान ..............और अपने राष्ट्र पर अभिमान , मैं ढूंढ़ रहा उस ऊषा को ....................जिसमे छुपा है वो सवेरा , हर रात्रि आता यही विचार ..............किंचित कल का है वह सवेरा | रुपेश ..... .१०/०३ /२००४ सर्वाधिकार सुरक्षित