सुना है वो बिना माँ बाप के हैं
पर बुनते हैं वो भी ,
अपनी आँखों में सतरंगी सपने
वो सतरंगी सपने जो ,
बदल जाते हैं हर बार कत्थई रंग में
इन्ही सतरंगों से तो गढ़ते हैं वो ,
हर बार अपने लिए एक नया आसमां
वो आसमां, जो है धानी रंग का
जिसमे देखते हैं वो ,
उस धूप को ,जो चमका देती है
उनके इन सतरंगी सपनों को और भी
पर पता नहीं क्यों हर बार ?
पिघला नहीं पाती ये धूप ,
उस सफ़ेद बर्फ को , जिसके साए तले
दब जाते हैं उनके सतरंगी सपने ,
और बदल जाते हैं काले स्याह रंग में
कुछ घासलेटी रंग जैसे
वो चाहते हैं कोई एक और धूप भी ,
जो पिघला सके इस सफ़ेद बर्फ को
और बना सके हकीकत ,
उनके इन सतरंगी सपनों को
वो बिना माँ बाप के हैं ,
हाँ वो अनाथ हैं.... !!
- रुपेश
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