मैं इश्क हूं जाया नहीं जाऊंगा ! कयामत तलक तुझे याद आऊंगा !! जब भी बीतेंगी गुरबतों में जिन्दगी ! फिर से मोहब्बत का पैगाम फहरा जाऊंगा !! जब बंटेगी जिन्दगानियां फिरकापरस्ती में ! मैं मुल्क की मजहबी दीवारें गिराने आऊंगा !! पुकारेगा लहू जब भी पुरजोर मेहनतकशों का मैं अपना लाल रंग उस लहू में मिला जाऊंगा !! जो चाहेगा बने रहे मुल्क, सबके रहने लायक मैं हर उस शख्स को बावक्त याद आऊंगा !! मैं इश्क हूं , जाया नहीं जाऊंगा कयामत तलक, तुझे याद आऊंगा !! - रूपेश ( भगतसिंह के लिये...उनके जन्मदिन पर... 28 सितम्बर )
मेरे जीवन के इस छोटे से सफ़र में अब तक जो भी पड़ाव आये हैं ,,,,,,,उन्हीं से मिले अनुभवों को लिखने का प्रयास मैं कर रहा हूँ........अनुभव स्वयं में अच्छे या बुरे नहीं होते.....ये तो हमारी अपेक्षाएं हैं जो उन्हें अच्छा या बुरा सिद्ध कराती हैं......एवं अपेक्षाओं के पैमाने व्यक्तित्वों के अनुसार बदलते रहते हैं.......... अतः निश्चित रूप से मेरे अनुभव मेरे व्यक्तित्व के दर्पण होंगे.....!!! ..........रूपेश .