वो देखना चाहते हैं उन्हें ,
सिर्फ अपनी नज़रों से !
और दिखाना चाहते हैं वही ,
बाकी दुनिया को भी !
कि उनके देखने की ललक ,
बना देती है उन्हें अजूबा !
बाकी दुनिया के लिए ,
कुछ कुछ अजायबघर जैसा !
फिर करते हैं वो बातें ,
वो बातें जो नहीं भरतीं ,
उनके बिलखते बच्चों के पेट !
वो लिखते हैं उनकी बातें ,
जिससे नहीं आती तब्दीली ,
कोई भी उनकी उस जिंदगी में !
जिससे निजात पाने के लिए ,
वो करते हैं मेहनत दिन रात ,
और फिर रह जाती हैं वही बातें
जिनके न होने से शायद ,
करता कोई कुछ उनके लिए !
बैठे हैं आज भी वो इस इंतज़ार में ,
कि कभी तो ख़तम होंगी ये बातें !
और शुरू होगा कुछ और भी ,
जो बदलेगा उनके और
उनके नौनिहालों के भविष्य भी ,
कि जब ये बातें ख़तम होंगी ,
तब शायद जी पायें वो भी इक दिन ,
अपनी मनचाही जिंदगी !
- रुपेश
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