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ओ लाल गमछे वाले ......!!!

ओ लाल गमछे वाले  !!

तुम अब क्यों नहीं आते इस ओर ?
तुम आते थे जब भी इधर ,
ले जाते थे अपने साथ 
लाल पसीने से सने फावड़े ,
और लगाते थे बुलंद हुंकार 
जिसकी गूँज से सिहर जाते थे ,
उन काले जिगर वालों के दिल भी 
जिनकी गिद्ध सी लालची नज़रों ने ,
लहूलुहान किया कई बार 
उस  मेहनतकश को भी ,
जिसके कुदाल की एक चोट भी 
फोड़ देती थी इस धरती का सीना ,
और उगा देती थी 
उन नए सपनों की पौध ,
जिसके सहारे वो बुनता था 
अपनी खुशहाल जिंदगी के सपने !

ओ लाल गमछे वाले 
तुम अब क्यों नहीं आते ?
मिलते थे जब भी पहले तुम 
देखते ही तुम्हारे लाल आँखों की चमक , 
मिलते थे हौंसले उनको भी 
जिनके खुद जीने  की  चाहतें  ,
दूसरों के फैसलों में उगा करती थीं ,

ओ लाल गमछे वाले 
क्या तुम्हारी आँखों में भी अब ,
आ गया है वो कालापन 
जिसने रंग लिया है ,
उस लाल को अपने रंग में 
जिसमे रंगने की उम्मीदों ने ,
खड़ा किया था उन कंकालों को भी 
जो बैठे रहते थे इस शमशान को , 
अपनी नियति मानकर 
और मिलाते थे अपनी आवाज़ भी , 
तुम्हारे उस लाल सलाम में 
जो दहला देती थी काले दिलों को !


ओ लाल गमछे वाले तुम 
अब क्यों नहीं आते इस ओर   !!!

                       -    रूपेश 

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