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यादें तुम ऎसी क्यों हो .....?

यादें , तुम ऐसी क्यों हो ?

तुम्हारी तल्खी मजबूर करती है मुझे ,
मुझे तुमसे दूर जाने को
और खुद ही को भूल जाने को ,
उन लम्हों को भी
जिनका साथ पाकर तुम यूँ तल्ख़ बनी ,

यादें तुम ऐसी क्यों हो?

तुम्हारे खुशनुमा संसार में जाते ही ,
डूब जाता हूँ खुद ही में मैं ,
और उन लम्हों में भी ,
जिनके साए में बैठकर तुम इतनी हसीं बनी ,
और देती हो आज भी खुशनुमा अहसास !

यादें तुम ऎसी क्यों हो ?

क्यों यूँ मेरी जिंदगी के साथ चलती हो ?
मेरी तरह क्यों नहीं कभी तुम भी थकती हो?
कभी तो मेरे साए से खुद को दूर कर लो ,
कभी तो थोडा ठहरो , आराम कर लो !

यादें तुम ऎसी क्यों हो ?

 पर कहाँ ठहर   पाती हो  तुम ?
मुझको मुझ से ही मिलवाती हो तुम ,
मैं गर भूलना भी चाहूँ तुमको कभी ,
मुझको उतना ही सताती हो तुम !






यादें , तुम ऐसी क्यों हो ? रूपेश
२७/०२/२०१२


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