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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सुना है उस गली में ....... !!!!

उस गली से गुज़रते हुए ,
 बंद कर लेता हूँ अपनी आँखों को मैं ,
 और थाम लेता हूँ अपनी तेज़ साँसे ,
 सुना है उस गली में ,
 मेरा यार रहता है.....

 उन दरख्तों और दीवारों ,
 पे लिखे हर हर्फ़ को पड़ता हूँ गौर से ,
 पता है उनमे उस घर का ,
 जहाँ मेरा प्यार रहता हैं !

 गलियां तो गलियां है ,
 एक दिन गुज़र ही जानी है ,
 पर फिर भी नज़रो पे ,
 दीदार ऐ यार रहता है !

 चलता हूँ खुद को ढो के उनकी याद में ,
 फिर उस वस्ल का इंतज़ार रहता है !
 इस गली में न आने की
खाता हूँ फिर फिर कसमें ,

 सुना है इस गली में ,
 मेरा यार रहता है .....!!!


रूपेश श्रीवास्तव २८/०२/२०१२


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