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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

सूरज चाचू कल मत आना .....!!!

सूरज चाचू कल मत आना ,
आना तो बारिश दीदी को लाना !
रोज रोज तुम आते हो ,
और ठण्ड में मुझे जगाते हो !
फिर माँ मुझको नहलाती है ,
स्कूल छोड़कर आती है !
टीचर का डांटना तुम क्या जानो ?
तुम पर हँसे दोस्त तब मानो !
इतना 'होमवर्क' मिल जाता है ,
जी भर खेल कहाँ हो पाता है ?
बँटी संग खेल जब घर आता हूँ ,
रोज माँ की डांट तब पाता हूँ !
फिर माँ मुझको समझाती है ,
'मैथ्स' 'जिओग्राफी' में खो जाती है !
दो और दो चार होते हैं क्यों ?
गोल ये धरती घूमे है यों !!
ये बातें मुझे सताती हैं ,
'डोरेमोन ' की याद दिलाती हैं !
जब थक कर सोने जाता हूँ ,
'छोटा भीम ' में खुद को पाता हूँ !
फिर सुबह को तुम आ जाते हो ,
और ठण्ड में मुझे जगाते हो !

,
सूरज चाचू कल मत आना , आना तो बारिश दीदी को लाना !!

रुपेश
२५/०२/२०१२ सर्वाधिकार सुरक्षित

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