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निस्सार अकेलेपन की गहराई में....!!!

निस्सार अकेलेपन की तन्हाई में
जब झांकता हूँ खुद में मैं !
पाता हूँ यहाँ भी तुमको ही ,
और देखता हूँ तुम्हारी वो चमकीली आँखें ,
और तिरछी मुस्कान भी !
जिसकी तपिश से ही सिहर उठता हूँ मैं ,
और याद करता हूँ हमारी जिंदगी के वो लम्हे ,
जो बिताये थे हमने साथ साथ
और उन सपनों को भी
जो बुने थे तुमने ,
और शामिल किया था
मुझे भी इन सपनों में !
लेकिन जिसका आखिरी सिरा
अधूरा ही छोड़ा तुमने ,
और मैं निरा,
आज भी उलझा हूँ
उन सपनो को टुकड़ा टुकड़ा कर जोड़ने में !
ये उम्मीद लगाये ,
कि एक दिन बुन लूंगा मैं इन्हें
पर कहाँ जोड़ पाऊंगा अब मैं उन्हें ?
क्योंकि कहाँ हैं मेरे पास वो चमकीली आँखें?
जिनकी चमक से ही रोशन हो उठता मेरा संसार ,
और वो तिरछी मुस्कान भी
जो भरती खुशियाँ उस चमकीले संसार में !
इसलिए अब डरता हूँ खुद से मैं
और अपनी इस तन्हाई से भी ,
फिर भी न जाने क्यों ?
झांकता हूँ मैं खुद में और अपने
निस्सार अकेलेपन की गहराई में
क्यों ? जबकि पाता हूँ
तुमको ही वहां भी ......!!!!


रुपेश
२६ /०२ /२०१२

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