सहर तुम क्यों नहीं आती ?
उनकी जिंदगी में ,
जो बैठे हैं बरसों से ये आस लगाये
कि आओगी एक दिन तुम ,
उनकी हमसफ़र बनकर
और महताब हो जायेंगी ,
उनकी वो उम्मीदें जिनके दम पर
जिया करते हैं वो अपने आज को ,
कि आओगी एक दिन तुम
और ले आओगी आब ,
उनके प्यासे होठों पर
जिसकी ठंडक से उनका दिल ,
फिर से पुरसुकूं पा जाएगा
कि आने भर से ही तुम्हारे ,
उनकी बरसों कि वो मुरादें
पा लेंगी उस मकाम को ,
और साथ ले आएँगी खुशियाँ
निरी उनकी दुनिया में ,
सहर आकर तो देखो
उनकी जिंदगी में जो बने बैठे हैं ,
दूसरों के सपने और उम्मीदें भी ,
फिर मानोगी तुम भी खुशनसीब
खुद को , उनका हमसफ़र बनकर
सहर तुम क्यों नहीं आती ?
रुपेश श्रीवास्तव
२४/०२/२०१२
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