जब मिले थे हम आखिरी बार ,
तुमने कहा था !
हम नदी के वो किनारे हैं ,
जो कभी मिल नहीं सकते |
पर क्यों न याद रहा तुम्हें ?
कि उसी नदी पर बने पुल की तरह
एक पुल हम दोनों ने भी बनाया था |
ये मानकर कि इसके सहारे ,
हम तय कर लेंगे वो दूरियां ,
जो बनायीं हैं समाज ने हमारे बीच
पार कर लेंगे नफरत के उस दरिया को ,
जो दुनिया के रिवाजी पानी से भरा है ,
क्यों न याद रहा तुम्हें ?
कि हमारे बनाये पुल की मजबूती ही
सहारा है औरों का भी ,
इस दरिया को पार कर जाने का
फिर कैसे भूले तुम ?
कि हमारा पुल ही मिला देता
नदी के इन दो किनारों को
कैसे मान लिया तुमने ?
हम नदी के वो दो किनारे हैं
जो कभी मिल नहीं सकते
क्यों न याद रहा तुम्हें !!!!
रुपेश.......
03/02/2012
सर्वाधिकार सुरक्षित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें