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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

क्यों न याद रहा तुम्हें !

जब मिले थे हम आखिरी बार ,
तुमने कहा था !
हम नदी के वो किनारे हैं ,
जो कभी मिल नहीं सकते |
पर क्यों न याद रहा तुम्हें ?
कि उसी नदी पर बने पुल की तरह
एक पुल हम दोनों ने भी बनाया था |
ये मानकर कि इसके सहारे ,
हम तय कर लेंगे वो दूरियां ,
जो बनायीं हैं समाज ने हमारे बीच
पार कर लेंगे नफरत के उस दरिया को ,
जो दुनिया के रिवाजी पानी से भरा है ,
क्यों न याद रहा तुम्हें ?
कि हमारे बनाये पुल की मजबूती ही
सहारा है औरों का भी ,
इस दरिया को पार कर जाने का
फिर कैसे भूले तुम ?
कि हमारा पुल ही मिला देता
नदी के इन दो किनारों को
कैसे मान लिया तुमने ?
हम नदी के वो दो किनारे हैं
जो कभी मिल नहीं सकते
क्यों न याद रहा तुम्हें !!!!

रुपेश.......
03/02/2012



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