खेतों में खड़े बिजूका को देख कर
कभी कभी सोचता हूँ मैं ,
हम भी तो कुछ इसी तरह जीवन बिताते हैं..
ये सोचकर दूसरों के दुखों से भागते हैं ,
जैसे बिजूका को खड़ा देख पंछी नहीं आते
ऐसे ही दूसरों जैसी मुसीबतें हम तक कभी नहीं आएगी ,
पर सुना है आज कल पंछी पहचानने लगे हैं
बिजूका और इंसान के फर्क को ,
और दोनों को एक मानना छोड़ दिया है उन्होंने ,
वैसे ही जैसे मुसीबतें मानती हैं हमें भी दूसरों जैसा ,
और इंतज़ार करती हैं हमारा उनके घेरे में आने तक ,
उसी तरह जैसे खेत में खड़े इंसान को देखकर ,
उनके जाने का इंतज़ार पंछी करते हैं
और टूट पड़ते हैं उसी बिजूका पर
जिसे वो जीता मानकर डरा करते थे !
इसीलिए अब पंछी बिजूका से और
मुसीबतें इंसान से नहीं डरतीं .....!!!!
रूपेश श्रीवास्तव
२५/ ०१ / २०१२
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