सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

खुशियाँ.......


कल देखा मैंने उसे ,
खुशियों की बरात में
एक दर्द भरा चेहरा लिए ,
यूँ तो इन खुशियों में
कुछ हिस्सा उसका भी था
पर ये भी उसका दर्द कम न कर पायीं ,
मेरे मन ने सवाल पुछा
आखिर क्यों होता है ऐसा ?
एक की खुशियाँ दूसरे को दर्द क्यों दे जाती हैं
क्यों खुशियाँ भी सीमाओं में बंध जाती हैं ?
क्यों नहीं होता ऐसा कि
अनंत व्योम में फैलती ये खुशियाँ ,
प्रकाशित होतीं सभी के हृदयों में ,
सूर्य की रोशनी की तरह ,
किंचित यही है सत्य जीवन का भी
पर क्या यही सत्य स्वीकार करना होगा ?
या इसे बदलने का प्रयास भी करना होगा ,
यदि एक सा छोटा प्रयास भी हम कर पायेंगे ,
तभी इस कटु सत्य को झुठला पायेंगे |

- रूपेश श्रीवास्तव
01 / 12 / 2011



सर्वाधिकार सुरक्षित

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाजार.................!!!!

तुम्हारे बाजार की बातें क्यों नहीं समझ पाता मैं? जबकि हर बार लाते हो तुम  एक नया फलसफा मुझे समझाने का , कुछ इस तरह गोया सब साइंस ही है  ख़ास तौर से बाज़ार का वो साइंस  जो तुम समझाते  हो मुझे कि  प्रक्टिकली बाज़ार है तो इल्यूज़न  लेकिन एक्जिस्ट करता है , उस सर्वव्यापी ईश्वर की  तरह  जिसकी सत्ता हम  विज़ुअलाइज़ तो  नहीं कर  सकते  पर फील जरूर  कर सकते हैं  सो तुम्हारे आर्ग्यूमेंट खड़ा कर देते हैं  तुम्हारे बाज़ार को ईश्वर के बराबर  और मैं तुम्हारे लिए बन कर रह जाता हूँ  उस एथीस्ट की तरह जिसकी सत्ता को  ईश्वर के वो फॉलोअर भी नहीं स्वीकार पाते  जो सब में ईश्वर को ही देखते हैं ..!!!  - रूपेश  

बातें...... !

वो देखना चाहते हैं उन्हें , सिर्फ अपनी नज़रों से ! और दिखाना चाहते हैं वही , बाकी दुनिया को भी ! कि उनके देखने की ललक , बना देती है उन्हें अजूबा ! बाकी दुनिया के लिए , कुछ कुछ अजायबघर जैसा ! फिर करते हैं वो बातें , वो बातें जो नहीं भरतीं , उनके बिलखते बच्चों के पेट ! वो लिखते हैं उनकी बातें , जिससे नहीं आती तब्दीली , कोई भी उनकी उस जिंदगी में ! जिससे निजात पाने के लिए , वो करते हैं मेहनत दिन रात , और फिर रह जाती हैं वही बातें  जिनके न होने से शायद , करता कोई कुछ उनके लिए ! बैठे हैं आज भी वो इस इंतज़ार में , कि कभी तो ख़तम होंगी ये बातें ! और शुरू होगा कुछ और भी , जो बदलेगा उनके और  उनके नौनिहालों के भविष्य भी , कि जब ये बातें ख़तम होंगी , तब शायद जी पायें वो भी इक दिन ,  अपनी मनचाही जिंदगी !       - रुपेश  Copyright publication

सतरंगी सपने.........!!!

सुना है वो बिना माँ बाप के हैं  पर बुनते हैं वो भी , अपनी आँखों में सतरंगी सपने  वो सतरंगी सपने जो , बदल जाते हैं हर बार कत्थई रंग में  इन्ही सतरंगों से तो गढ़ते हैं वो , हर बार अपने लिए एक नया आसमां  वो आसमां, जो है धानी रंग का  जिसमे देखते हैं वो , उस धूप  को ,जो चमका देती है  उनके इन सतरंगी सपनों को और भी  पर पता नहीं क्यों हर बार ? पिघला नहीं पाती ये धूप , उस सफ़ेद बर्फ को , जिसके साए तले  दब जाते हैं उनके सतरंगी सपने , और बदल जाते हैं काले स्याह रंग में  कुछ घासलेटी रंग जैसे  वो चाहते हैं कोई एक और धूप  भी , जो पिघला सके इस सफ़ेद बर्फ को  और बना सके हकीकत , उनके इन सतरंगी सपनों को  वो बिना माँ बाप के हैं , हाँ वो अनाथ हैं.... !!          - रुपेश