मेरे जीवन के इस छोटे से सफ़र में अब तक जो भी पड़ाव आये हैं ,,,,,,,उन्हीं से मिले अनुभवों को लिखने का प्रयास मैं कर रहा हूँ........अनुभव स्वयं में अच्छे या बुरे नहीं होते.....ये तो हमारी अपेक्षाएं हैं जो उन्हें अच्छा या बुरा सिद्ध कराती हैं......एवं अपेक्षाओं के पैमाने व्यक्तित्वों के अनुसार बदलते रहते हैं.......... अतः निश्चित रूप से मेरे अनुभव मेरे व्यक्तित्व के दर्पण होंगे.....!!! ..........रूपेश .
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011
खुशियाँ.......
कल देखा मैंने उसे ,
खुशियों की बरात में
एक दर्द भरा चेहरा लिए ,
यूँ तो इन खुशियों में
कुछ हिस्सा उसका भी था
पर ये भी उसका दर्द कम न कर पायीं ,
मेरे मन ने सवाल पुछा
आखिर क्यों होता है ऐसा ?
एक की खुशियाँ दूसरे को दर्द क्यों दे जाती हैं
क्यों खुशियाँ भी सीमाओं में बंध जाती हैं ?
क्यों नहीं होता ऐसा कि
अनंत व्योम में फैलती ये खुशियाँ ,
प्रकाशित होतीं सभी के हृदयों में ,
सूर्य की रोशनी की तरह ,
किंचित यही है सत्य जीवन का भी
पर क्या यही सत्य स्वीकार करना होगा ?
या इसे बदलने का प्रयास भी करना होगा ,
यदि एक सा छोटा प्रयास भी हम कर पायेंगे ,
तभी इस कटु सत्य को झुठला पायेंगे |
- रूपेश श्रीवास्तव
01 / 12 / 2011
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