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बुधवार, 24 अप्रैल 2013

आओ मन की गिरहें खोल दें ......!!!

आओ अपने मन की गिरहें खोल दें ,
 उनके हौसलों को फिर नए पर दें ,
छू पायेंगे वो भी फिर इन  आसमानों को 
गर इक बार अपने ये काँधे हम उनको दें !

आओ मन की गिरहें खोल दें ...

हैं गहरे ख्वाब उनकी  छोटी आँखों में ,
भरे हैं लाखों मुराद इस छोटे मन में ,
उनकी उम्मीदों को फिर नए रंग दें ,
इन सपनों में अपने ही कुछ रंग भर दें !

आओ मन की गिरहें खोल दें ..

तुम्हारे साथ से ही वो दम भर जायेंगे ,
आसमां तो क्या समंदर भी नाप आयेंगे ,
हो जाएगा तुम्हारा  जीवन भी  इन्द्रधनुष सा 
गर इक  बार इस  बचपन को अपना संग  दें 

आओ अपने मन की गिरहें खोल दें .....!!!

 -  रूपेश 


भारत में दो करोड़ अनाथ बच्चों में से केवल 0.3 % हर साल  ही दूसरे परिवारों द्वारा अपनाए जाते हैं ...इसे और बढाने की जरूरत  है .....जिससे ये भी और बच्चों की तरह परिवार का साथ पा सकें !!







शनिवार, 13 अप्रैल 2013

सतरंगी सपने.........!!!

सुना है वो बिना माँ बाप के हैं 

पर बुनते हैं वो भी ,
अपनी आँखों में सतरंगी सपने 
वो सतरंगी सपने जो ,
बदल जाते हैं हर बार कत्थई रंग में 
इन्ही सतरंगों से तो गढ़ते हैं वो ,
हर बार अपने लिए एक नया आसमां 
वो आसमां, जो है धानी रंग का 
जिसमे देखते हैं वो ,
उस धूप  को ,जो चमका देती है 
उनके इन सतरंगी सपनों को और भी 
पर पता नहीं क्यों हर बार ?
पिघला नहीं पाती ये धूप ,
उस सफ़ेद बर्फ को , जिसके साए तले 
दब जाते हैं उनके सतरंगी सपने ,
और बदल जाते हैं काले स्याह रंग में 
कुछ घासलेटी रंग जैसे 
वो चाहते हैं कोई एक और धूप  भी ,
जो पिघला सके इस सफ़ेद बर्फ को 
और बना सके हकीकत ,
उनके इन सतरंगी सपनों को 
वो बिना माँ बाप के हैं ,
हाँ वो अनाथ हैं.... !!

         - रुपेश 



गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

बातें...... !


वो देखना चाहते हैं उन्हें ,

सिर्फ अपनी नज़रों से !
और दिखाना चाहते हैं वही ,
बाकी दुनिया को भी !
कि उनके देखने की ललक ,
बना देती है उन्हें अजूबा !
बाकी दुनिया के लिए ,
कुछ कुछ अजायबघर जैसा !
फिर करते हैं वो बातें ,
वो बातें जो नहीं भरतीं ,
उनके बिलखते बच्चों के पेट !
वो लिखते हैं उनकी बातें ,
जिससे नहीं आती तब्दीली ,
कोई भी उनकी उस जिंदगी में !
जिससे निजात पाने के लिए ,
वो करते हैं मेहनत दिन रात ,
और फिर रह जाती हैं वही बातें 
जिनके न होने से शायद ,
करता कोई कुछ उनके लिए !
बैठे हैं आज भी वो इस इंतज़ार में ,
कि कभी तो ख़तम होंगी ये बातें !
और शुरू होगा कुछ और भी ,
जो बदलेगा उनके और 
उनके नौनिहालों के भविष्य भी ,
कि जब ये बातें ख़तम होंगी ,
तब शायद जी पायें वो भी इक दिन ,
 अपनी मनचाही जिंदगी !

      - रुपेश 


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