आओ अपने मन की गिरहें खोल दें ,
उनके हौसलों को फिर नए पर दें ,
छू पायेंगे वो भी फिर इन आसमानों को
गर इक बार अपने ये काँधे हम उनको दें !
आओ मन की गिरहें खोल दें ...
हैं गहरे ख्वाब उनकी छोटी आँखों में ,
भरे हैं लाखों मुराद इस छोटे मन में ,
उनकी उम्मीदों को फिर नए रंग दें ,
इन सपनों में अपने ही कुछ रंग भर दें !
आओ मन की गिरहें खोल दें ..
तुम्हारे साथ से ही वो दम भर जायेंगे ,
आसमां तो क्या समंदर भी नाप आयेंगे ,
हो जाएगा तुम्हारा जीवन भी इन्द्रधनुष सा
गर इक बार इस बचपन को अपना संग दें
आओ अपने मन की गिरहें खोल दें .....!!!
- रूपेश
भारत में दो करोड़ अनाथ बच्चों में से केवल 0.3 % हर साल ही दूसरे परिवारों द्वारा अपनाए जाते हैं ...इसे और बढाने की जरूरत है .....जिससे ये भी और बच्चों की तरह परिवार का साथ पा सकें !!