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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ओ लाल गमछे वाले ......!!!

ओ लाल गमछे वाले  !! तुम अब क्यों नहीं आते इस ओर ? तुम आते थे जब भी इधर , ले जाते थे अपने साथ  लाल पसीने से सने फावड़े , और लगाते थे बुलंद हुंकार  जिसकी गूँज से सिहर जाते थे , उन काले जिगर वालों के दिल भी  जिनकी गिद्ध सी लालची नज़रों ने , लहूलुहान किया कई बार  उस  मेहनतकश को भी , जिसके कुदाल की एक चोट भी  फोड़ देती थी इस धरती का सीना , और उगा देती थी  उन नए सपनों की पौध , जिसके सहारे वो बुनता था  अपनी खुशहाल जिंदगी के सपने ! ओ लाल गमछे वाले  तुम अब क्यों नहीं आते ? मिलते थे जब भी पहले तुम  देखते ही तुम्हारे लाल आँखों की चमक ,  मिलते थे हौंसले उनको भी  जिनके खुद जीने  की  चाहतें  , दूसरों के फैसलों में उगा करती थीं , ओ लाल गमछे वाले  क्या तुम्हारी आँखों में भी अब , आ गया है वो कालापन  जिसने रंग लिया है , उस लाल को अपने रंग में  जिसमे रंगने की उम्मीदों ने , खड़ा किया था उन कंकालों को भी  जो बैठे रहते थे इस...