ओ लाल गमछे वाले !! तुम अब क्यों नहीं आते इस ओर ? तुम आते थे जब भी इधर , ले जाते थे अपने साथ लाल पसीने से सने फावड़े , और लगाते थे बुलंद हुंकार जिसकी गूँज से सिहर जाते थे , उन काले जिगर वालों के दिल भी जिनकी गिद्ध सी लालची नज़रों ने , लहूलुहान किया कई बार उस मेहनतकश को भी , जिसके कुदाल की एक चोट भी फोड़ देती थी इस धरती का सीना , और उगा देती थी उन नए सपनों की पौध , जिसके सहारे वो बुनता था अपनी खुशहाल जिंदगी के सपने ! ओ लाल गमछे वाले तुम अब क्यों नहीं आते ? मिलते थे जब भी पहले तुम देखते ही तुम्हारे लाल आँखों की चमक , मिलते थे हौंसले उनको भी जिनके खुद जीने की चाहतें , दूसरों के फैसलों में उगा करती थीं , ओ लाल गमछे वाले क्या तुम्हारी आँखों में भी अब , आ गया है वो कालापन जिसने रंग लिया है , उस लाल को अपने रंग में जिसमे रंगने की उम्मीदों ने , खड़ा किया था उन कंकालों को भी जो बैठे रहते थे इस...
मेरे जीवन के इस छोटे से सफ़र में अब तक जो भी पड़ाव आये हैं ,,,,,,,उन्हीं से मिले अनुभवों को लिखने का प्रयास मैं कर रहा हूँ........अनुभव स्वयं में अच्छे या बुरे नहीं होते.....ये तो हमारी अपेक्षाएं हैं जो उन्हें अच्छा या बुरा सिद्ध कराती हैं......एवं अपेक्षाओं के पैमाने व्यक्तित्वों के अनुसार बदलते रहते हैं.......... अतः निश्चित रूप से मेरे अनुभव मेरे व्यक्तित्व के दर्पण होंगे.....!!! ..........रूपेश .