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विधाता ...........!!!

जग के स्वामी हो तुम कहलाते , घट घट में तुम ही पूजे जाते ! आत्मा अनादि का अंत हो तुम ,  बुद्धों का अंतिम लक्ष्य हो तुम !  गौतम के त्रिरत्नों में तुम ही रचे , अरिहंत के तत्वों में तुम ही बसे ! न्यायावतार का पद हो जो लिए , दृष्टि फिर यों बंद क्यों हो किये ?  हैं ब्रह्म तत्व के ज्ञानी जो , मानें हैं तुम्हें अन्तर्यामी वो ! फिर ऐसा विधान रचे हो क्यों ? असमय ही त्रास दिए हो क्यों ?  हो निर्देशक अवचेतन के जो ,  भ्रम रखते हो चेतन में क्यों ?  ईश्वरत्व के पद की सिद्धि करो,  भक्तों के भ्रम को दूर करो ! प्रश्नों के जो उत्तर न दे पाओगे  फिर कैसे यों विधाता कहलाओगे ? -  रूपेश  ०६/०५/२०१२  सर्वाधिकार सुरक्षित