घट घट में तुम ही पूजे जाते !
आत्मा अनादि का अंत हो तुम ,
बुद्धों का अंतिम लक्ष्य हो तुम !
गौतम के त्रिरत्नों में तुम ही रचे ,
अरिहंत के तत्वों में तुम ही बसे !
न्यायावतार का पद हो जो लिए ,
दृष्टि फिर यों बंद क्यों हो किये ?
हैं ब्रह्म तत्व के ज्ञानी जो ,
मानें हैं तुम्हें अन्तर्यामी वो !
फिर ऐसा विधान रचे हो क्यों ?
असमय ही त्रास दिए हो क्यों ?
हो निर्देशक अवचेतन के जो ,
भ्रम रखते हो चेतन में क्यों ?
ईश्वरत्व के पद की सिद्धि करो,
भक्तों के भ्रम को दूर करो !
प्रश्नों के जो उत्तर न दे पाओगे
फिर कैसे यों विधाता कहलाओगे ? -
रूपेश
०६/०५/२०१२
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