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आदत ......

क्या सोचा है कभी ? जब बनते हो तुम बोझ उस पर , और बदले में देते हो कुछ रुपये उसकी संतुष्टि इसी में हो जाती है और तुम भूल जाते हो , क़ि कभी बोझ बने थे उस पर फिर अपनी गाड़ी के आगे उसे पाते ही देखते हो उसे ऐसी हिकारत भरी नज़र से गोया क़ि उसने तुम्हारे आगे आने की हिम्मत कैसे की? केवल तुम्हें ही है हक उससे आगे जाने का और वो भी दे देता है तुम्हें रास्ता क्योंकि उसे पता है क़ि , तुम भूल चुके हो उसके अहसान को और दबा चुके हो अपनी आत्मा को उन चन्द रुपयों के नीचे जो तुमने उसे कभी दिए थे अपने बोझ बन जाने के अहसास को भूल जाने के लिए क्योंकि उसे पता है तुम केवल उसके ही नहीं औरों के अहसानों को भी अब याद नहीं रखते अपने बेटों के दाखिले की चिंता तुम्हें सताती है पर अपने बुज़ुर्ग के घुटने का दर्द तुम मह्सूस नहीं कर पाते और फिर वो तो तुम्हारा कोई नहीं तुम्हें बाहर खड़ी अपने गाड़ी के भीगने क़ी चिंता सताती है पर तुम भूल जाते हो घर के उस छत को जिसके सीलन भरी दीवारों के अन्दर तुम्हारे बुज़ुर्ग दिन बिताते हैं इस आस में क़ि आने वाली छुट्टी में तुम घर आओगे और बदल दोगे इस छत और उ...