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विचार .....

आज पुनः सोच रहा यह ह्रदय मेरा ..........आखिर कब आएगा वह सवेरा ? है जिसमे राम - राज्य की परिकल्पना .....सर्वत्र सबके लिए सद्भावना , बसते हैं जिसमे संतोष और विश्वास .........रहती चहुँ ओर प्रेम की आस , कुंठा दुर्भावना से कोसों दूर ...................नहीं दुराग्रह का कोई स्थान , न ईर्ष्या हो न तपन ह्रदय में ................हो केवल शीतल मलय जीवन में , मन हों सबके ऐसे आह्लाद .................जैसे होता पक्षियों का निनाद , होता पग पग पे स्वाभिमान ..............और अपने राष्ट्र पर अभिमान , मैं ढूंढ़ रहा उस ऊषा को ....................जिसमे छुपा है वो सवेरा , हर रात्रि आता यही विचार ..............किंचित कल का है वह सवेरा | रुपेश ..... .१०/०३ /२००४ सर्वाधिकार सुरक्षित